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Thursday, November 29, 2012

कजरारे नयन तुम्हारे 

करे मेघ भी कारे

मुझ भ्रमर मन को चैन कहाँ 


उडत फिरत हूँ 



रस को तिहारे




इत-उत निहारूं
,


चित किंचित अकुलाए 


पल भर को पलक झपकाओ ,


प्रिय 


मोर मन धीर कहीं तो पाए ..........Poonam 

12 comments:

  1. उडत फिरत हूँ...दरस को तिहारे,
    पल भर को पलक झपकाओ ,
    मोर मन धीर कहीं तो पाए प्रिय.
    बहुत खूब शानदार रचना पूनम जी.

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    1. Vaibhav जी शुक्रिया आपने ब्लॉग में ये रचना पढ़ी और अपनी प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन भी किया

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  2. Replies
    1. जयकृष्ण जी ......आप का ब्लॉग में स्वागत है .......इस रचना को सराह कर आपने मुझे इस रीति में लिखने को प्रोत्साहित किया है ........अधिकतर मई हिंदी -उर्दू मिश्रण लिखती हूँ ......कभी कभी ही लोक भाषा में लिखती हूँ :)

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  3. lok bhasa me padhkar achha laga.... purani yaden taza hui jab hume classes me hindi ki kavitaye teacher ke dwara pdhai jati thi....... i m so thankfull to posted this types poem.

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    1. अतुल ........:) आपका आभार के आपने इस तरह के प्रयोग को सराहा

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  4. सुंदर प्रस्तुति ...
    शुभकामनायें ...

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    1. अनुपमा जी शुक्रिया

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    1. संगीता जी होसला अफजाई का शुक्रिया

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  6. प्रेम सिंचित भावनाएं. बहुत अच्छी लगी.

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